जगदलपुर, 31 मार्च । छत्तीसगढ़ का बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है। घने जंगल, यहां के वाटरफॉल और नैसर्गिक गुफाएं पूरे देश और विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर तिरिया वन ग्राम है। यहां से माचकोट का घना जंगल शुरू हो जाता है। यहां कच्चे रास्ते और पहाड़ी नाला पार करके 10 किलोमीटर जंगल के भीतर तोलावाड़ा बीट अंतर्गत कटीली तार से इन विशालकाय सागौन के पेड़ों को संरक्षित किया गया है। माचकोट एरिया के इस घने जंगल में इस रेंज के सबसे विशालकाय सागौन के पेड़ों को वन विभाग ने राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का नाम दिया हुआ है। खास बात यह है कि सिर्फ 20 मीटर के दायरे में यह चारों पेड़ एक सीधी कतार में खड़े हुए हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो त्रेतायुग के यह चारों भाई एक साथ खड़े हैं।
बस्तर में ही भारत का सबसे प्राचीन सागौन का पेड़ है। इन पेड़ों की उम्र लगभग 600 साल हैl इसमे से एक पेड़ को भगवान श्री राम का नाम दिया गया है। इसे भारत का सबसे प्राचीन सागौन का पेड़ माना जाता है। इस पेड़ के अगल बगल में तीन और सागौन के पुराने पेड़ हैं, जिन्हें लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम से जाना जाता है। दरअसल इन पेड़ों की वास्तविकता आयु की गणना के हिसाब से देखा जाए तो यह अयोध्या में श्रीराम लल्ला के जन्म स्थान निर्माण के पहले से अस्तित्व में है।
स्थानीय ग्रामीण और जानकार रोहन कुमार बताते हैं कि भगवान राम का इस दंडकारण्य से गहरा संबंध रहा है। इसलिए इन पेड़ों की उम्र के आधार पर नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न किया गया है। ऐसी भी मान्यता है कि कुछ ग्रामीण बरसों पहले सागौन के इस पुराने पेड़ों को काटने पहुंचे थे लेकिन जैसे ही कुल्हाड़ी चली इन पेड़ों से इंसानी आवाजें आई जिसे सुनकर ग्रामीण डर गए तब से इन्हें देव पेड़ मानकर ग्रामीण इन पेड़ों की पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि गुप्तेश्वर भगवान राम का चातुर्मास के दौरान आश्रय स्थल रहा है। गुप्तेश्वर जाने वाले भक्त इन रामनामी सागौन को देखना शुभ मानते हैं। यह पेड़ तिरिया-गुप्तेश्वर मुख्य मार्ग से छह किमी दूर हैं। पास ही सागौन के दो पुराने पेड़ और मिले हैं। इन्हें क्रमश: सीता और हनुमान नाम दिया गया है। अब क्षेत्रवासी तोलावाड़ा जंगल में पूरा रामदरबार होने की बात श्रद्धा से कहने लगे हैं।