पदोन्नति में अफसर मस्त कर्मचारी कर्मचारी त्रस्त

भोपाल। नए साल के पहले ही दिन प्रदेश के आला अफसरों यानि की अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों को थोक में पदोन्नति प्रदान कर दी जाती है, लेकिन प्रदेश के अन्य कर्मचारियों को हर साल इंतजार ही करना पड़ता है। हालत यह है कि बीते आठ सालों से कर्मचारियों को पदोन्नति का जो इंतजार बना हुआ है, वह समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है। जिन अफसरों को नए साल के पहले ही दिन यह लाभ अनवरत रूप से मिलता चला आ रहा है। उनमें आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसर शामिल हैं। इन अफसरों को लगातार पदोन्नति मिलने की वजह से प्रदेश के कर्मचारियों की ङ्क्षचता ही नहीं है। इसकी वजह से इन सालों में प्रदेश के करीब सवा लाख कर्मचारी बगैर पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त होने को मजबूर हो चुके हैं। इस मामले में पूर्व की सरकारों से लेकर वर्तमान सरकार तक का रवैया दोहरा बना हुआ है।प्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका है जब राज्य के अधिकारी-कर्मचारियों को जद्दोजहद के बाद भी प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है, जबकि नौकरशाहों के मामले में कोई अड़चन नहीं है। एक ही प्रदेश में दो प्रकार की नीति होने से कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ती ही जा रही है।

नौकरशाह इसलिए फायदे में
हाईकोर्ट ने 2002 के पदोन्नति नियम खारिज किए हैं, जबकि नौकरशाहों ने बीच का रास्ता निकाल लिया। इन्हें प्रमोशन के बजाय वरिष्ठ वेतनमान दिया जाता है। वरिष्ठ वेतनमान मिलने से ओहदा भी बढ़ रहा है। कर्मचारियों के मामले मेें सरकार तर्क देती है कि मामला कोर्ट में है। आदेश का इंतजार किया जा रहा है। इसकी वजह से राज्य के अधिकारी-कर्मचारी भी इंतजार ही कर रहे हैं।

दिखावे के लिए बना दी जाती हैं कमेटी
कमलनाथ सरकार के समय मामला सदन में उठा। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने आसंदी से यहां तक कहा कि जब तक राज्य कर्मचारियों के प्रमोशन शुरू नहीं होते, तब तक नौकरशाहों के भी प्रमोशन न किए जाएं। राज्य कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता निकालने हाईपावर कमेटी बनाई गई। कमेटी कागजों तक सीमित रही। बैठक नहीं हो पाई और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। शिवराज सरकार में भी कैबिनेट कमेटी गठित हुई, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। तभी से मामला फाइलों में कैद है। हालांकि अधिकारी, कर्मचारियों की नाराजगी दूर करने के लिए सरकार ने उच्च पद का प्रभार देने का रास्ता निकाला है। कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यवाहक का प्रभार सौंपकर संतुष्ट किया जा रहा है। पुलिस, जेल और वन विभाग के वर्दी वाले पदों पर यह व्यवस्था लागू की गई है, लेकिन कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं।

क्यों नहीं मिल रहा प्रमोशन
2002 में तत्कालीन सरकार ने पदोन्नति नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान कर दिया। ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए, लेकिन सामान्य वर्ग के कर्मचारी पिछड़ गए। विवाद बढ़ा तो कर्मचारी कोर्ट पहुंचे। प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने का आग्रह किया। तर्क दिया कि प्रमोशन का लाभ सिर्फ एक बार मिलना चाहिए। मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। शीर्ष कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया। यानी तब से राज्य में अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन बंद हैं।

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