भगवान शिव को बहुत प्रिय है यह पौधा, इस दिन भूलकर भी न तोड़े, समृद्धि और शांति का है प्रतीक, जानिए महत्व

शमी का पौधा जालोर की पवित्र धरती पर आस्था और परंपरा का प्रतीक है. शमी भगवान शिव को प्रिय यह पौधा न केवल धार्मिक महत्व रखता है, विजय, समृद्धि और शांति का प्रतीक भी माना जाता है.  जालोर में धार्मिक आस्था के प्रतीक के रूप में शमी का पौधा विशेष महत्व रखता है. शिव भक्त मानते हैं कि शमी का पौधा भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है. शिवालयों में इसे अर्पित करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है. यह पौधा न केवल पूजा-अर्चना का हिस्सा है, बल्कि भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करने का भी माध्यम माना जाता है.
 जालोर में धार्मिक आस्था के प्रतीक के रूप में शमी का पौधा विशेष महत्व रखता है. शिव भक्त मानते हैं कि शमी का पौधा भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है. शिवालयों में इसे अर्पित करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है. यह पौधा न केवल पूजा-अर्चना का हिस्सा है, बल्कि भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करने का भी माध्यम माना जाता है.

 जालोर की मिट्टी में धार्मिक मान्यताओं की गहरी जड़ें हैं. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के वृक्ष के नीचे छुपाए थे. विजय प्राप्ति के बाद उन्होंने इस वृक्ष की पूजा की, जिससे यह विजय और सफलता का प्रतीक बन गया. जालोर के प्रमुख शिवालयों जैसे सुरेश्वर महादेव और सारणेश्वर महादेव में शमी के पत्तों को अर्पित करना भक्तों की एक अनिवार्य परंपरा है.

 शमी के पौधे को सोम, शनि, रवि और अमावस्या के दिन नहीं तोड़ा जाता. यहां के बुजुर्गों का मानना है कि इन दिनों शमी में शनिदेव का वास होता है और इसे तोड़ने से अशुभ फल मिलता है. शिव भक्त सोमवार को भी इस पौधे को नहीं तोड़ते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान शिव को समर्पित होता है.

 जालोर के शिवालयों और धार्मिक परंपराओं में शमी का पौधा गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक है. इसे अर्पित करने से भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है.

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