उम्र के फार्मूले से भाजपा के अनुभवी नेताओ को फिर झटका

बिलासपुर। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अब भाजपा संगठनात्मक और निकाय चुनाव की तैयारी में है। पर पार्टी संगठन के उम्र वाले फार्मूले ने कद्दावर नेताओ के बाद अब ऊर्जावान नेताओ को कोंटा पकडऩे विवश कर दिया है। यही हाल रहा तो सत्ता की तरह संगठन भी साय साय हो जाएगा। भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में मंडल और जिला अध्यक्षों के लिए उम्र सीमा तय कर दी है। मंडल अध्यक्ष बनने के लिए 35 से 45 साल और जिला अध्यक्ष के लिए 45 से 60 साल की उम्र तय की गई है। हालांकि, प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अभी कोई उम्र सीमा तय नहीं हुई है। यह नया नियम पार्टी में युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया गया है। लेकिन इस रणनीति ने फिर पार्टी के पुराने और अनुभवी नेताओं को कोंटा पकडऩे विवश कर दिया है। अनुभवी नेताओ के बजाए चेहरा बदलने का क्या असर है ये पूरा प्रदेश देख रहा है। प्रदेश में प्रशासनिक और कानून व्यवस्था का क्या और कैसे हालात है ये किसी से नही छिपा है। नेताजी ज्यादातर बाहर रहते है क्योंकि पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी है। आमजन तो आमजन कार्यकर्ता तक खुश नही है छोटे-मोटे काम के लिए उन्हें अफसरों से सहयोग नही मिल रहा नेताजी आते है तो इतनी भीड़ हो जा रही कि वे अपनी बात तक नही कह पा रहे और यदि कह पा रहे तो हो कुछ नही रहा जिससे उनमें आक्रोश गहराता जा रहा। पार्टी संगठन की मर्यादा के कारण वे भले खुलकर कुछ नही कह पा रहे पर जब उनसे चर्चा होती है वे न छापने की शर्त पर कहते है कि अब पार्टी पहले जैसी नही रही। चुनाव के समय जिन कार्यकर्ताओ की पार्टी की रीड़ बताया जाता है सत्ता आने और सरकार में जिमेदारी मिलने के बाद उन्ही कार्यकर्तों को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दे रहे। अब नेताजी भी करे तो क्या करे एक तो प्रदेश भर की जिम्मेदारी और दौरे पर दौरा। ऊपर से एक ही पावर सेंटर है इसलिए पब्लिक कार्यकर्ता नौकरशाह कर्मचारी सब वही पहुँच जा रहे। कार्यकर्ताओ को जनदर्शन में अपनी बात रखनी पड़ रही पर हो कुछ नही रहा जिससे नाराजगी है। सामने निकाय संगठन और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने है। सालों से पार्टी के लिए काम कर रहे वरिष्ठ नेता खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं में नाराजगी है ऐसे में खुद उपेक्षित कार्यकर्ता जनता के पास किस मुँह से वोट मांगने जाएंगे ये बडा सवाल है। बताया जा रहा कि सोमवार को जिला भाजपा कार्यालय में इस विषय को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, बैठक के दौरान तो किस ने खुलकर विरोध नही किया।लेकिन जैसे ही बैठक समाप्त हुई, कार्यकर्ताओं और पुराने नेताओं का गुस्सा फूट पड़ा। जिसकी चर्चा आम है।

दो महामंत्री 1 ने आना बंद कर दिया
भाजपा संगठन के जिला महामंत्री को कार्यानुभव और व्यवहार की कसौटी के आधार पर जिलाध्यक्ष के पद पर प्रमोट किया जाता है। संगठन में दो जिला महामंत्री है इनमे से एक नाराज चल रहे उन्होंने पार्टी के बैठकों और कार्यक्रमो से करीब साल डेढ़ साल से अपने को अलग कर लिया है। बताया जा रहा कि संगठन के एक पदाधिकारी के व्यवहार से नाराज होकर उन्होंने आना ही बन्द कर दिया।

आगे होगा क्या
ऐसा नही है कि सत्ता और संगठन के नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं और कद्दावर नेताओ की इस नाराजगी से वाकिफ नही है, उन्हें सब पता है। अब चर्चा इस बात की है कि जो बातें या खामियां सामने आई है क्या उनका निदान कर डेमेज कंट्रोल करने पहल की जाएगी। या नए सारथियो से ही कोर्रा चलवाकर निकाय और पंचायत चुनाव के मैदान मारने की रणनीति यथावत रखी जायेगी।

कही मार्गदर्शक मंडल की तैयारी तो नही
साय मंत्री मंडल में दो मंत्रियों के पद रिक्त है, आधा दर्जन से ज्यादा दावेदार है। संभागवार और जातिगत समीकरण को साधने के साथ पुराने नेताओ से परहेज की जो रणनीति दिखाई दे रही है। चर्चा इस बात को लेकर है कि जिन नेताओ का पूरे प्रदेश भर में डंका बजता था क्या अब उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेजने की तैयारी है।

न्यायधानी से हो न्याय
आजादी के बाद से लेकर सन 2018 तक चाहे वह मध्यप्रदेश शासनकाल रहा हो या छत्तीसगढ़, प्रदेश की राजनीति में बिलासपुर का बड़ा जलवा रहा। भाजपा शासन हो या कांग्रेस 4-4, 5-5 मंत्री विधानसभा अध्यक्ष उपाध्यक्ष नेता प्रतिपक्ष सब यही से रहे। 2018 के बाद बिलासपुर नेतृत्व के मामले में कमजोर रहा। वर्तमान में एक ही दरवाजा है आवश्यकता इस बात की है कि यहाँ से एक और मंत्री पद मिले ये जनता की मांग है कार्यकर्ताओ की भी ताकि एक और दरवाजा खुले सबको लाभ मिल सके।

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